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Showing posts from April, 2020

ज़रा वक्त तो दीजिये

ये वक्त भी गुजर जाएगा, कल जैसे बीता आज भी बीत जाएगा, ज़रा ठहरिये तो साहब, गम से मत डरिये, ये तो 1 बूंद है समंदर में, वक्त दीजिये.... ये भी सुख जाएगा।

सपनों के आशियाना

चाँद को कमरे की छत्त पर सजा दूँ, दीवारों पर असमा की चादर ओढा दूँ, बादलों में हो गद्दा और चाँदनी चादर, आ तुझे मैं तेरे तन्हाइयों से निकाल कर, अपने सपनों के आशियाने में कुछ यूँ बसा दूँ।

कभी कभी खयाल आता है,

आधी जिंदगी निकल गई, कल की आधी जिंदगी सवारने में, और वो भी निकल जायेगी, आने वालों की जिंदगी बनाने में। कभी कभी खयाल आता है, की क्या ही रखा है इस जिंदगी में, सच तो यही है, हर किसी को मारना है, तो फिर क्यों यूँ मार मार के जी रहे हैं, जब जाते वक्त कोई अपना साथ नही होता है, फिर लगता है, जिसने जन्म दिया  जिसने पाला उसकी सोचो, उसको देखो, खुद के लिए न सही उसके लिए जियो जिसने  खुद की चाहत दबा के मुझे उभारा है। In short....जिंदगी खुद के लिए नही दूसरों के लिए जी जाती है, और लोग अपनी समझ के अपने मे ही रह जाते हैं।

Munafe Ke Insaan

Jo log aaj bhagwaan k naam par aaj itni badi badi hank rhe.. Wahi kal waqt aane par choti se choti sacchi baat krne se mukar jate hain... Apne munafe k liye insan kya bhagwan ko bhi bech khate hain,  or khud ko mandir me usi bhagwan ka saccha bhakt batate hain.. Ganga ho ya Yamuna paap dhulne ko kaha kaha se chale aate hain,  or usi kinare gareeb bhikhari ko bheekh dene ke liye kai mukar jate hain.

फैसला

फैसला हो जाये तो ही अच्छा है, कल के पैमैनिश आज ही हो तो अच्छा है, क्यों डर डर के जी रहे हो, मौत आनी है, आज ही आजाये तो अच्छा है।

कांच सा टूटना

कांच सा टूट हूँ मैं,  हर तरफ बस मेरे ही अंश हैं, जोड़ने की लाख कोशिश की, पर हर एक बार खुद को ही चोट पहुंचा बैठा हूँ मैं।

सोच

मैं सोचता हूँ तो सोचता ही रह जाता हूँ, कीतनी भी कर लूँ कोशिशें मैं सोच में ही डूब रह जाता हूँ।

चलानी

क्यों न मैं भी चलनी सा बन जाऊं, अपने मतलब की रखूं और बाकी सब झार जाऊं।

वक्त

कुछ तो बात होगी ही तुझमे अये वक़्त, जो हर घाव का मलहम तू बन जाता है, जितना भी गहरा क्यों न हो यादों का समंदर तू उनपर भी पुल बन कर भवसागर पार लगा ही देता है।

उधार

आगे भी जाना है और पीछे का साथ भी देना है, ये चाहत है साहब यहाँ जीने के लिए साँसें भी उधार में ही लेना है।

यादें

कुछ बातें  रोज ही बिछड़े यारों से मिलने चले आते हैं, जो रूह पर कुरेदी हैं लकीरें उन्हें मिटाने का हुनर अभी हमने सीखा नहीं।

ममता की छांव

थक गया हूँ चलते चलते, कुछ देर का आराम चाहिये, राहों में पेड़ तो बहुत हैं, पर मुझे ममता का हीं छांव चाहिये।
इरादतन कुछ भी नही था। पल दो पल बातें हुईं और प्यार हो गया।

ये जिंदगी है, ऐसी ही है।

जिंदगी है, ऐसी ही है, कभी खट्टी तो कभी मीठी सी है, कभी जीत तो कभी हार भी भी है, कभी हसी तो कभी आंसू भी हैं, बस यही जिंदगी है, अच्छे बुरे कई लम्हे मिलेंगे, जी कर उनको आगे बढ़ना ही जिंदगी है, ये जिंदगी है, ऐसी ही है, कुछ ऐसी ही है।

अस्क

चित्त भी तेरी पट्ट भी तेरी हर भी तेरी ये जीत भी तेरी मुस्कुराहटें भी तेरी और माथे की सिकन भी तेरी, फिर क्यों ये निगाहे मेरी और ये अस्क तेरे।

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता ये दर्द कम हो जाएंगे बीते थे जो लम्हे तेरे यादों में वो सिमट से जाएंगे जरा वक्त तो बीतने दो,  सुना है वक्त सबको बिता देता है।

घरोंदा

तूने तो मेरा घरोंदा ही निकल दिया अपने गली से, हम भी जी लेंगे साहब, सुना है दुनिया बहुत बड़ी है।

जन्नत

मेरी जान तो जन्नतों में बस्ती है, क्योंकि वह की पनाह किसी ऐरेगेरे को नसीब नहीं होती।
लोग दिलों की बात करते हैं, पर सुनते हैं चहरों की ।

लडखडाने पर मैं क्यों रूकूं

गिर के तो सब चलना सीखते हैं, तो लडखडाने पर मैं क्यों रूकूं, काल तक जो हुआ वो हो चुका अब उस काल के लिए अपना आने बल काल क्यों खराब करुं।

दो सिरे डोर के

दो सिरे थे डोर के, ढ़ीली पड़ चुकी थी पकड़ जिनकी, छूट कर जुड़ना था जिनको मजबूती से ..... जब जुड़े तो लोग उसे दोनो के बीच की गांठ कहने लगे...।

वो दिन है तो मैं रात हूँ

वो दिन है तो मैं रात हूँ,  वो सुबह की पहली किरण तो मैं रात का आगाज हूँ, रह कर साथ भी हम कितनी दूर हो गए, रास्ते तो एक ही थे..... पर फिर क्यों हम अकेले चलने को मजबूर हो गए......!!

इतना आसान नही

इतना आसान नही यहाँ खुश रह पाना, यहाँ लोगों को अपने दुःख से ज्यादा गम दूसरों के खुशियों से होती हैं।