कैसे कहें अब क्या बात हो गयी,
बस ये समझो भी छाते के निकले थे और बरसात हो गयी,
भला खिलखिलाते धूप में ये कैसी बात हो गयी,
अभी तो ढंग से सूरज भी बादलों में नही छुपा था और ये बरसात हो गयी,
न पास कोई पेड़ है ना कोई मकान,
लौटना नामुमकिन और मंजिल काफी दूर,
अब तो.... आगे कुवां ओर पीछे खाई ... कुछ ऐसी बात हो गई।
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